महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, रचनाएं, भाषा शैली एवं साहित्य में स्थान, महावीर प्रसाद द्विवेदी के निबंध, mahavir prasad dwivedi ka jivan parichay, Mahavir Prasad Dwivedi Biography in Hindi,
हिन्दी साहित्याकोश के देदीप्यमान नक्षत्र आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी युग-प्रवर्तक साहित्यकार, भाषा के परिष्कारक, समालोचना के सूत्रधार एवं यशस्वी सम्पादक थे। द्विवेदी जी की साहित्य-साधना का विधिवत् शुभारम्भ ‘सरस्वती’ पत्रिका के सम्पादन अर्थात् सन् 1903 ई० से ही होता है। ‘सरस्वती’ का सफलतापूर्वक सम्पादन करते हुए इन्होंने भारतेन्दु युग के हिन्दी गद्य में फैली अनियमितताओं, व्याकरण सम्बन्धी अशुद्धियों, विराम-चिह्नों के प्रयोग की त्रुटियों, पण्डिताऊपन और अप्रचलित शब्दों के प्रयोग को दूर कर हिन्दी गद्य को व्याकरण के अनुशासन में बाँधा और उसे नवजीवन प्रदान किया। तो चलिए आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी जी के बारे में संपूर्ण जानकारी देंगे, ताकि आप परीक्षाओं में ज्यादा अंक प्राप्त कर सकें।
तो दोस्तों, आज के इस लेख में हमने “महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय” (Mahavir Prasad Dwivedi biography in Hindi) के बारे में बताया है। इसमें हमने आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, रचनाएं एवं कृतियां, भाषा शैली, कविता, पुरस्कार एवं द्विवेदी जी के माता-पिता का नाम और हिंदी साहित्य में महावीर प्रसाद द्विवेदी का योगदान को भी विस्तार पूर्वक सरल भाषा में समझाया है।
इसके अलावा, इसमें हमने आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के जीवन से जुड़े उन सभी प्रश्नों के उत्तर दिए हैं जो अक्सर परीक्षाओं में पूछे जाते हैं। यदि आप भी द्विवेदी जी के जीवन से जुड़े उन सभी प्रश्नों के उत्तर के बारे में जानना चाहते हैं तो आप इस आर्टिकल को अंत तक अवश्य पढ़ें।
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महावीर प्रसाद द्विवेदी का संक्षिप्त परिचय
विद्यार्थी ध्यान दें कि इसमें हमने द्विवेदी जी की जीवनी के बारे में संक्षेप में एक सारणी के माध्यम से समझाया है।
महावीर प्रसाद द्विवेदी की जीवनी –
पूरा नाम | आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी |
वास्तविक नाम | महावीरसहाय द्विवेदी |
उपाधि | आचार्य |
जन्म तिथि | 05 मई सन् 1864 ईस्वी में |
जन्म स्थान | उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के दौलतपुर ग्राम में |
मृत्यु तिथि | 21 दिसम्बर सन् 1938 ईस्वी में |
मृत्यु स्थान | रायबरेली, उत्तर प्रदेश |
पिता का नाम | पं० रामसहाय द्विवेदी |
माता का नाम | हमें ज्ञात नहीं है |
शिक्षा | प्रारंभिक शिक्षा गाॅंव की पाठशाला में |
पैशा | लेखक, कवि, निबंधकार, पत्रकार, आलोचक |
लेखन विधा | कविता, निबंध, आलोचना, कहानी, उपन्यास |
साहित्य काल | आधुनिक काल (द्विवेदी युग) |
साहित्यिक आंदोलन | भारतीय स्वाधीनता आंदोलन |
सम्पादन | “सरस्वती” पत्रिका |
भाषा | परिष्कृत, परिमार्जित एवं व्याकरण-सम्मत हिंदी भाषा |
शैली | परिचयात्मक, आलोचनात्मक, गवेषणात्मक |
प्रमुख रचनाएं | अद्भुत आलाप, विचार विमर्श, रसज्ञ रंजन, संकलन, साहित्य सीकर, हिंदी भाषा की उत्पत्ति, हिंदी महाभारत, शिक्षा, स्वाधीनता आदि। |
पुरस्कार | साहित्य वाचस्पति पुरस्कार |
साहित्य में स्थान | द्विवेदी युग के प्रवर्तक के रूप में हिंदी साहित्य जगत् में द्विवेदी जी का महत्वपूर्ण स्थान है। |
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी (Acharya Mahavir Prasad Dwivedi in Hindi) (1864-1938) जी भाषा परिष्कारक के अतिरिक्त समर्थ समालोचक भी थे। इन्होंने अपने लेखन में प्राचीन साहित्य एवं संस्कृति से लेकर आधुनिक काल तक के अनेक विषयों का समावेश करके साहित्य को समृद्ध किया। द्विवेदी जी ने वैज्ञानिक आविष्कारों, भारत के इतिहास, महापुरुषों के जीवन, पुरातत्त्व, राजनीति, धर्म आदि विविध विषयों पर साहित्य-रचना की । द्विवेदी जी की अभूतपूर्व साहित्यिक सेवाओं के कारण ही इनके रचना-काल को हिन्दी-साहित्य में ‘द्विवेदी युग’ कहा जाता है।
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महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय
हिन्दी गद्य साहित्य के युग-विधायक आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी का जन्म 5 मई, सन् 1864 ईस्वी को उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के दौलतपुर गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम पं० रामसहाय द्विवेदी था जो ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में साधारण सिपाही थे। तथा इनकी माता का नाम हमें ज्ञात नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि इनके पिता पण्डित रामसहाय द्विवेदी जी को महावीर का इष्ट था, इसीलिए इन्होंने अपने पुत्र का नाम ‘महावीरसहाय’ रखा।
आचार्य द्विवेदी जी की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में हुई। पाठशाला के प्रधानाध्यापक ने भूलवश इनका नाम महावीरप्रसाद लिख दिया था। यह भूल हिन्दी साहित्य में स्थायी बन गयी। तेरह वर्ष की अवस्था में अंग्रेजी पढ़ने के लिए इन्होंने रायबरेली के जिला स्कूल में प्रवेश लिया। यहाँ संस्कृत के अभाव में इनको वैकल्पिक विषय फारसी लेना पड़ा। यहाँ एक वर्ष व्यतीत करने के बाद कुछ दिनों तक उन्नाव जिले के रंजीत पुरवा स्कूल में और कुछ दिनों तक फतेहपुर में पढ़ने के पश्चात् ये पिता के पास बम्बई (मुम्बई) चले गये। वहाँ इन्होंने संस्कृत, गुजराती, मराठी और अंग्रेजी का अभ्यास किया। इनकी उत्कट ज्ञान-पिपासा कभी तृप्त न हुई, किन्तु जीविका के लिए इन्होंने रेलवे में नौकरी कर ली। रेलवे में विभिन्न पदों पर कार्य करने के बाद झाँसी में डिस्ट्रिक्ट ट्रैफिक सुपरिटेण्डेण्ट के कार्यालय में मुख्य लिपिक हो गये। पाँच वर्ष बाद उच्चाधिकारी से खिन्न होकर इन्होंने नौकरी से त्याग पत्र दे दिया। इनकी साहित्य साधना का क्रम सरकारी नौकरी के नीरस वातावरण में भी चल रहा था और इस अवधि में इनके संस्कृत ग्रन्थों के कई अनुवाद और कुछ आलोचनाएँ प्रकाश में आ चुकी थीं।
सन् 1903 ई० में महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने ‘सरस्वती’ पत्रिका का सम्पादन स्वीकार किया। सन् 1920 ई० तक यह गुरुतर दायित्व इन्होंने निष्ठापूर्वक निभाया। ‘सरस्वती’ से अलग होने पर इनके जीवन के अन्तिम अठारह वर्ष गाँव के नीरस वातावरण में बड़ी कठिनाई से व्यतीत हुए। 21 दिसम्बर, सन् 1938 ईस्वी को रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में हिन्दी के इस यशस्वी साहित्यकार का स्वर्गवास हो गया।
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का साहित्यिक परिचय
हिन्दी साहित्य में द्विवेदीजी का मूल्यांकन तत्कालीन परिस्थितियों के सन्दर्भ में किया जा सकता है। वह समय हिन्दी के कलात्मक विकास का नहीं, हिन्दी के अभावों की पूर्ति का था। द्विवेदी जी ने ज्ञान के विविध क्षेत्रों, इतिहास, अर्थशास्त्र, विज्ञान, पुरातत्त्व, चिकित्सा, राजनीति, जीवनी आदि से सामग्री लेकर हिन्दी के अभावों की पूर्ति की। हिन्दी गद्य को माँजने-संवारने और परिष्कृत करने में आजीवन संलग्न रहे।
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी को हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने “साहित्य वाचस्पति” एवं नागरी प्रचारिणी सभा ने “आचार्य” की उपाधि से सम्मानित किया था। उस समय टीका-टिप्पणी करके सही मार्ग का निर्देशन देनेवाला कोई न था। इन्होंने इस अभाव को दूर किया तथा भाषा के स्वरूप-संगठन, वाक्य विन्यास, विराम चिह्नों के प्रयोग तथा व्याकरण की शुद्धता पर विशेष बल दिया। लेखकों की अशुद्धियों को रेखांकित किया। स्वयं लिखकर तथा दूसरों से लिखवाकर इन्होंने हिन्दी गद्य को पुष्ट और परिमार्जित किया। हिन्दी गद्य के विकास में इनका ऐतिहासिक महत्त्व है।
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महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रमुख रचनाएँ
द्विवेदीजी ने 50 से अधिक ग्रन्थों तथा सैकड़ों निबन्धों की रचना की थी। इनके मौलिक ग्रंथों में— (1). अद्भुत आलाप, (2). विचार-विमर्श, (3). रसज्ञ-रंजन, (4). संकलन, (5). साहित्य-सीकर, (6). कालिदास की निरंकुशता, (7). कालिदास और उनकी कविता, (8). हिन्दी भाषा की उत्पत्ति, (9). अतीत-स्मृति, (10). वाग्-विलास आदि महत्त्वपूर्ण हैं।
ये उच्चकोटि के अनुवादक भी थे। इन्होंने संस्कृत और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में अनुवाद किया है। संस्कृत के अनूदित ग्रंथों में— (1). रघुवंश, (2). हिन्दी महाभारत, (3). कुमारसंभव, (4). किरातार्जुनीय तथा अंग्रेजी से अनूदित ग्रंथों में— (5). बेकन विचार-माला, (6). शिक्षा, (7). स्वाधीनता आदि उल्लेखनीय हैं।
महावीर प्रसाद द्विवेदी की कविता
द्विवेदी जी की रचनाओं एवं कविताओं का सम्पूर्ण विवरण निम्नलिखित हैं—
- कविता-संग्रह— काव्य-मंजूषा ।
- निबन्ध— सरस्वती एवं अन्य पत्रिकाओं में प्रकाशित निबन्ध।
- आलोचना— रसज्ञ रंजन, नैषधचरित चर्चा, हिन्दी नवरत्न, नाट्यशास्त्र, कालिदास की निरंकुशता, कालिदास और उनकी कविता, विचार विमर्श आदि।
- अनूदित— रघुवंश, कुमारसम्भव, किरातार्जुनीय, हिन्दी महाभारत, बेकन विचारमाला, शिक्षा, स्वाधीनता आदि।
- सम्पादन— ‘सरस्वती’ पत्रिका ।
- अन्य रचनाएँ— साहित्य सीकर, हिन्दी भाषा की उत्पत्ति, सम्पत्तिशास्त्र, अद्भुत आलाप, संकलन, अतीत स्मृति, वाग्विलास, जल-चिकित्सा आदि ।
महावीर प्रसाद द्विवेदी की भाषा शैली
द्विवेदीजी की भाषा अत्यन्त परिष्कृत, परिमार्जित एवं व्याकरण-सम्मत हिंदी भाषा है। इसमें पर्याप्त गति तथा प्रवाह है। इन्होंने हिन्दी के शब्द-भण्डार की श्रीवृद्धि में अप्रतिम सहयोग दिया। इनकी भाषा में कहावतों, मुहावरों, सूक्तियों आदि का प्रयोग भी मिलता है। इन्होंने अपने निबंधों में परिचयात्मक शैली, आलोचनात्मक शैली, गवेषणात्मक शैली तथा आत्म-कथात्मक शैली का प्रयोग किया है। कठिन से कठिन विषय को बोधगम्य रूप में प्रस्तुत करना इनकी शैली की सबसे बड़ी विशेषता है। शब्दों के प्रयोग में इनको रूढ़िवादी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि आवश्यकतानुसार तत्सम शब्दों के अतिरिक्त अरबी, फारसी तथा अंग्रेजी शब्दों का भी इन्होंने व्यवहार किया है।
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महावीर प्रसाद द्विवेदी के निबंध का नाम
‘महाकवि माघ का प्रभात-वर्णन’ निबंध में द्विवेदी जी ने संस्कृत के महाकवि माघ के प्रभात-वर्णन सम्बन्धी हृदयस्पर्शी स्थलों को निबंधकार ने हमारे सामने रखा है। उसने बहुत ही कलात्मक ढंग से यह दिखलाया है कि किस तरह सूर्य और चन्द्रमा, नक्षत्र एवं दिग्वधुएँ अपनी-अपनी क्रीड़ाओं में तल्लीन हैं। सूर्य की रश्मियाँ अन्धकार को नष्ट कर जीवन और जगत् को प्रकाश से परिपूर्ण कर देती हैं। रसिक चन्द्रमा अपनी शीतल किरणों से रजनीगंधा को प्रमुदित कर देता है। सूर्य और चन्द्रमा समय-समय पर दिग्वधुओं से कैसे प्रणय-विवेदन करते हुए एक दूसरे के प्रति प्रतिद्वन्द्विता के भाव से भर उठते हैं, कैसे प्रवासी सूर्य का स्थान चन्द्रमा लेकर दिग्वधुओं से हास-परिहास करते हुए सूर्य के कोप का भाजन बन उसके द्वारा परास्त किया जाता है— इन सबका बड़ा मनोहारी चित्रण इस निबंध में किया गया है।
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का साहित्य में स्थान
साहित्य में स्थान— द्विवेदी जी हिन्दी गद्य के उन निर्माताओं में से हैं, जिनकी प्रेरणा और प्रयत्नों से हिन्दी भाषा को सम्बल प्राप्त हुआ है। इन्होंने और इनकी ‘सरस्वती’ पत्रिका ने अपने युग के साहित्यकारों का मार्गदर्शन कर अपनी प्रतिभा से पूरे युग को प्रभावित किया। इस प्रकार, द्विवेदी युग-प्रवर्तक के रूप में हिंदी साहित्य जगत् में आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदीजी का विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है।
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FAQs. महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के जीवन से जुड़े प्रश्न उत्तर
1. महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म कब और कहां हुआ था?
आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी का जन्म 5 मई, सन् 1864 ईस्वी को उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के दौलतपुर गाँव में एक साधारण कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
2. महावीर प्रसाद द्विवेदी का वास्तविक नाम क्या था?
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का वास्तविक नाम ‘महावीरसहाय द्विवेदी’ था। परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण इनकी शिक्षा गांव की पाठशाला में हुई। पाठशाला के प्रधानाध्यापक ने भूलवश इनका नाम महावीरप्रसाद द्विवेदी लिख दिया था।
3. महावीर प्रसाद द्विवेदी का मुख्य योगदान क्या रहा?
आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी जी ने हिंदी-साहित्य की अविस्मरणीय सेवा की और अपने युग की साहित्यिक और सांस्कृतिक चेतना को एक दिशा और दृष्टि प्रदान की है। इनके इस अतुलनीय योगदान के कारण आधुनिक हिंदी साहित्य जगत् का दूसरा युग “द्विवेदी-युग” (1900–1920) के नाम से जाना जाता है। इन्होंने 17 वर्ष तक हिन्दी की प्रसिद्ध पत्रिका ‘सरस्वती’ का सम्पादन किया है।
4. सरस्वती पत्रिका के संपादक का नाम क्या है?
“सरस्वती” हिंदी-साहित्य की प्रसिद्ध, रूप और गुणों से सम्पन्न एवं प्रतिनिधि पत्रिका थी। इस पत्रिका का प्रकाशन इण्डियन प्रेस, प्रयाग से सन् 1900 ई० के जनवरी मास में प्रारम्भ हुआ था। 32 पृष्ठों की मुकुट आकार की इस पत्रिका का मूल्य 4 आना मात्र था। सन् 1903 ई० में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी इसके संपादक हुए और सन् 1920 ई० तक रहे।
5. महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की मृत्यु कब हुई थी?
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की मृत्यु 21 दिसम्बर, सन् 1938 ईस्वी को रायबरेली, उत्तर प्रदेश में हुई थी।